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Tanha raah ka raahi

मैं तुमसे मुहब्बत करती हूँ, आख़िर क्यों 
तुम मुझे अपनी ज़िंदगी नहीं बना सकते 

यक़ीनन मैं वही लड़की हूँ जिसकी याद मैं
तुमने रातों में लिखकर लिखकर के डायरी के पन्नो को
तीरगी से निकालकर रौशनी बख़्शी है, 

मैं वही लड़की हूँ जिसकी तलाश में
तुम सुबह शाम मचलते रहते हो,
बग़ैर बात रातों में टहलते रहते है,

मैं वही लड़की हूँ, जिसे तुमने छुआ तो उस छुवन
वो नज़्म लिखी जिसे पढ़कर के मुझे हिज़्र की शब में वस्ल
अता होता है, मेरी भीगी हुई आखों को काजल अता होता है
मेरे बदन के गोशे गोशे में तुम्हारे नाम का लहू बह बहकर 
जब तुम्हारी नज़्में गुनगुनाता है तो मैं सिहर जाती हूँ कि आख़िर 
तुम एक शायर होते हुए भी आम सी ज़िन्दगी कैसे जी पाते हो
तुम्हें इस दुख में ऐसा क्या मिलता है के जिससे तुम अकेले
तन्हा बैठकर पूरी राते गुज़ार लेते हो,
तो मैं ये कहता हूं कि 
मैं एक शायर हूँ और मुझमें
दुःख इस तरह सजे है जैसे 
किसी जवान पेड़ पर बेले लटकी रहती है उनमें से कुछ बेलों को सूरज ने अपनी तपिश
से सूखा दिया हो, उस पेड़ से गिरा दिया हो, ज़मीं में मिला दिया हो और मेरे बदन में शायद लहू की जगह दुख बहता है,
की मुझको बस दुःख के अलावा कुछ नज़र नहीं आता,
मुझे समंदर की उन लहरों का दुख है जो लहरे दिन रात साहिलों पर अपना सर पटकती है, और समंदर के किसी कोने में जा मरती है,
मुझे मुहब्बत में बिछड़े हुओ का दुख है
मुझे टूटी कश्तियों का दुख है,
मुहब्बत में उदास लड़कियों का दुख है, जले हुए खतों का दुख,
मिटे हुए लफ़्ज़ों का दुख है, शिकस्ता होंठों का दुःख है कि 
मुझे उन फूलों का दुःख है जो खिले थे इस आस में शायद तेरे बालों में सजाएं जाएंगे, तेरी शबे-वस्ल में तेरे बिस्तर पर बिछाये जाएंगे 
मुझे उन कांटों का भी दुःख है जिन पर मुझ जैसे बदनसीब का पाँव नहीं पड़ा, 
यक़ीनन अब मैं इस बात भी ईमान ला चुका हूं कि तुम्हारे और मेरे रास्ते अलग है आईशा।

तारिक़ अज़ीम 'तनहा'

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2 Comments

Neelam josi

21-May-2022 04:55 PM

Very nice 👌

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Reyaan

21-May-2022 01:49 PM

👌👏

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